निराला-गालिब
निराला-गालिब
तड़प हो भूख की जिनको, बनें उनका निवाला हम ।
नमन करलो शहीदों को, गढ़े इक शब्द - माला हम ।
लिखें हम लेख या कविता, मिले तहजीब जिनसे अब,
रचें साहित्य ऐसा कुछ, निराला सा निराला हम ।।
मुखर वाणी करो अपनी, समेटो आग सीने में ।
सिखाओ प्रीति जन-जन को, न हो संताप जीने में ।
कहीं मिल जाय पैमाना, अगर गालिब के लफ्जों का,
परेशानी भला कैसी, यहाँ फिर अश्क पीने में ।।