नीव की ईंट..!
नीव की ईंट..!
ओह!
वो ईंट थी
नींव की.!
न होती
मज़बूत तो
बचाता कौन...?
गगनचुंबी अट्टालिकाओं को
झेलता कौन...?
हवा के गर्म थपेड़ों को..!
और कौन रोक सकता था
बेवक्त आये
तुफानी हवाओं को..!
हाँ...!
सब कुछ सह गया
वर्षों धूप में खड़ा
वह खंडहर सा दिखने वाला
वह प्राचीन मकान
क्योंकि...
सम्भाली थी उसको वह
मामूली सी ईंट
क्योंकि वह
ईंट थी नींव की
कोई दास्ताँ नहीं लिखी गई
उसके नींव की ईंट होने की
हाँ...
वह ईंट थी
नींव की..
