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sunil saxena

Romance

4  

sunil saxena

Romance

निगाहें कहीं और निशाना कहीं और

निगाहें कहीं और निशाना कहीं और

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निगाहें कहीं और निशाना कहीं और

देखा तुझे बार बार, दिल नहीं भरा हर बार

तू जो देखे मुझे तिरछी नज़र  से,

दिल धड़के मेरा, बाज़ के भड़कते पंखो की तरह


हर सुबह, शाम करूँ तेरे नाम

पर तू देखती मुझे सिर्फ तिरछी नज़र  से

तेरी निगाहें कहीं और निशाना कहीं और

कर रहीं मुझे बेहाल, तेरी तड़प में बन गया फूल से कांटा


ना चुभा, ना झुका, ना मुरझाया,

केवल तेरी ही आस में हूं खड़ा

हर दिशा में दिखती हैं तेरी ही

नशीली तिरछी नज़र देखते मुझे


घायल करके बना दिया मुझे आवारा भंवरा

फिरता हूं में फूल, फूल मंदरता  हुआ 

तेरी उस एक जादुई तिरछी नज़र   के लिए

तेरी निगाहें कहीं और निशाना कहीं और


घायल कर देती हैं मेरा ये कठोर दिल

न समझूँ मैं ये तेरी ज़ालिम अदा

जो पिघला देती है मेरी दिल फेंक निगाहों को, 

सिर्फ तेरी उस नशीली तिरछी नज़र  के लिए

निगाहें कहीं और निशाना कहीं और


निगाहें कहीं और निशाना कहीं और

निगाहें कहीं और निशाना कहीं और।  


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