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Kunda Shamkuwar

Abstract Others Romance

4.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Others Romance

नहीं जाना चाँद के पार

नहीं जाना चाँद के पार

1 min
211


तुम चल सकती हो मेरे संग
बहुत दूर तक
बादलों के पार
चमकते हुए चाँद पर
आओ, हम संग संग चलते है...….


मैं? तुम्हारे संग?
नही, नही!!!
मुझसे ना हो पायेगा....

मैं न आ सकूँगी तुम्हारे संग
क्योंकि ना ही चाँद पर
और बादलों में छुपती चाँद वाली कहानियों पर मुझे ऐतबार है....

क्योंकि चाँद सिर्फ तांकाझाँकी ही करता रहता है
उसे किसी के ग़म और खुशी से क्या लेनादेना?

रात में छत पर डिनर करनेवाले की खुशी में वह शामिल होता है
और किसी झोंपड़ी की टूटी छत से भूखे इन्सान को देखकर आगे बढ़ जाता है....

तुम शायद चाँद की तरह पत्थरदिल
हो सकते हो
लेकिन मैं नही.....

कल्पनाओं की खूबसूरत परियों को छोड़ जीतोड़ मेहनत करने वाली औरतों की ग़रीबी और शोषण की बात करो न..... मैं ज़रूर चलूँगी !!


पंचतारा संस्कृति से आती लैवेंडर की ख़ुशबू की बात छोड़ गाँव की मिट्टी और उसमें दो जून की रोटी के लिए जूझते मज़दूर की बात करो न..मैं ज़रूर चलूँगी!

किसी के नाम से सोने की ज़ंजीर पहन लेना आख़िर ज़ंजीर ही है....  

किसी के नाम से सुहागिन कहलाने के लिए सोने की चूड़ी आख़िर हथकड़ी नही तो क्या है?
किसी के नाम की सोने की बिछिया और नाक में नथ!!!बेड़ी और नकेल नही तो क्या है?

किसी ऐसी औरत की बात करो जो इस पाखंड और पराधीनता से उन्मुक्त होकर असीम आकाश में उड़ने की बात करती है... तो.. मैं ज़रूर चलूँगी !!!

चलो,आज से हम इसी दुनिया की बातें करें
ये चाँद सितारों की बातें एकदम खाली और खोख़ली लगती है......









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