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Shakuntla Agarwal

Tragedy

3  

Shakuntla Agarwal

Tragedy

||"नेटवर्क कट गए"||

||"नेटवर्क कट गए"||

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अपनों से नेटवर्क कटते जा रहे हैं,

रिश्ते आई सी यू में,

सँस्कार वेंटीलेटर पर,

हम साइलेंट मोड में जाते जा रहे हैं।

पश्चिमी सभ्यता की थाप पर,

हम नग्नता का नाच नाच रहे हैं,

सँस्कारों को होम कर,

आधुनिकता को ढाप रहे हैं हम।

सही मायने में निराधार हो गए हम,

धोबी का कुत्ता, न घर का,

न घाट का,जैसे हो गए हैं हम !

दुनिया से जुड़े, अपनों से कट गए हम,

संग बैठे, ग्रुपों में बंट गए हम,

सामाजिक मूल्यों से कट गये हम,

इमोशंस को खो, भावहीन हो गये हम,

दिखावटी दुनिया में कहीं खो गए हम,

हम नेटवर्क के मोहपाश में बंधते जा रहे हैं,

यूँ कहें, झूठे जाल में फँसते जा रहे हैं।

सच्चें रिश्तों को समेट,

बनावटी रिश्ते में कहीं खो गए हम,

दर्द के अहसास को खो,

बेदर्द हो गए हम,

हम से "मैं" की दुनिया में कहीं खो गए हम।

मत भूलो एक वक़्त ऐसा आएगा,

मोबाइल ही हाथ रह जाएगा,

अब भी वक़्त रहते, मोबाइल के चक्रव्यूह से निज़ात पा लो,

वरना मोबाइल तुम्हें "शकुन" लील जायेगा !!

 

  


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