नदी
नदी
नदी कहो, सरिता कहो, जो भी कहो मुझे
माता हूं मैं सबकी, प्यारा लगता सबको मेरे पास आकर।
बूढ़ा आए, बच्चा आए, हिन्दू हो या मुसलमान
सबको है भाता किनारा मेरा, मेरे पास आकर।
सभ्यता मुझसे गले मिलती, संस्कृति भी इठलाती है
लालन पालन सबका करती, अमृत रस बरसाती हूं।
बहती है तट पर मेरे, शुद्ध और शीतल हवा
शहर से आया हर जन, पाता राहत मेरे पास आकर।
भूखा प्यासा आए कोई या आए साधू संत
सब होते हैं प्रसन्न मेरे दर्शन पाकर।
गुरु नहीं मैं लेकिन, अच्छी तकदीर है मेरी
धन्य हो जाती हूं मैं गुरु का वंदन पाकर।
