नदी की आत्मकथा
नदी की आत्मकथा
पावन थी जब अवतरण हुआ था
अब नाले सी मैली हूं
पाप नाशिनी मोक्ष दायिनी
कहते थे लोग कभी
आज करकट कूड़ा रसायनों
को मिला के मुझ में
जानें कितनों के प्राण लिए
मैं बनी अभागी फिरती हूं
कल तक थे क्या काज किए
देखो जो आज किए।
देश का रखवाला मुझे
साफ करने भी आता है
दूसरे दिन देश मुझ में
दोगुना गंध गिराता है
मैं हार गई लाचार हुई
मानव जाति में शर्मसार हुई।
मेरे जीवन को बचा लो
मेरे अस्तित्व को बचा लो
मैं माँ थी कभी तुम्हारी
उसी का कर्ज चुका दो।
