नदी बहती है
नदी बहती है
नदी तो बहती है बनाते अपने रास्ते
पार करते पहाड़ पत्थर खड्ड और खाइयाँ
और बताती चलती है
अपने बहने की दिशा
इन्हें पार करते हुए किलकती है
हँसती खिलखिलाती लड़ती है
और बढ़ती जाती है
किसी अल्हड़ लड़की सी
घर भर से लड़ते झगड़ते
अपनी राह बनाने।
पार कर इन अवरोधों को
जब पाती है गहन गहराई
तब मुश्किल होता है जान पाना
कि नदी किस दिशा में बहती है?
जैसे चूल्हे के पास चुपचाप बैठी स्त्री
नहीं जान पाता कोई क्या सोच रही है?
खुश है किसी बात पर या है उदास
लेकिन नदी तो बहती है
स्त्री के मन में चल रहे किसी द्वंद की तरह
चुपचाप।