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नाविक

नाविक

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आँखों में सफ़ेद धुंध भरे

वो पीली धूप के स्वप्न बुनती है

पीड़ा के छिटके कणों को दोनों हाथों से समेटे

प्रेम के चेहरे पर जोड़ती जाती

हाँ और क्या करोंच सकी है वो उसमें

पीड़ा ही तो मन की प्रेरणा है

उसके और अपने बीच वो बस एक धुन सुन सकती है

माउथ ऑर्गन की उदास धुन

जो उसे किसी समुद्री यात्रा पर ले जाती है

उस क्षण उसके प्रेम का चेहरा नाविक बन जाता

जो दबे होठों से गुनगुनाता,"लड़की को नाविक से प्रेम है, है न!"

और वो पुतलियों में समंदर लिए अभिभूत हो जाती

कितना सुन्दर है ये दृश्य

प्रेम की सबसे सुखद अनुभूति

पर ये दृश्य स्मृति में टंका एक स्वप्न बन जाता है

जो उसने कभी जिया नहीं

उसे याद आता है उन आँखों में उसके लिए 'कुछ' नहीं

'कुछ' भी तो नहीं...

 


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