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Arti Varma

Romance

3  

Arti Varma

Romance

अधूरी नज़्म

अधूरी नज़्म

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शब् की पेशानी पर एक नर्म बोसा था क्या 

या तुमने एक नज़्म का सिरा खोला था

मैं सवेरे किसी प्लेटफार्म की बेंच पर बैठी मुन्तज़िर थी 

कब सिरा खोजते तुम 

किसी रेल की खिड़की पर दिख जाओ

या शायद जब मैं पीछे मुडूं तुम्हारे तलवों की आहट पर

सुफ़ेद कुर्ते की बाँह मोड़ते तुम किसी किताब की जिल्द पर 

मेरा नाम उकेरते दिख जाओ

मैं यूँ अटकी हूँ नज़्म के बीचों बीच जैसे

हलक़ में कोई इज़हार अटका हो

सुनो! तुम आओ जब...दूसरा सिरा साथ लेते आना 

या इस दफ़ा मेरे नाम कोई मुकम्मल नज़्म कहना

मैं सीख गयी हूँ 

अधूरी नज़्म में मिसरे जोड़ना 





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