फिलर
फिलर
रंगों से सने पैलेट को देख
उँगलियों को तलब लगती है
ब्रश थाम लेने की
कभी जब खनकने लगती हैं
विंड चाइम में पिरोई सीपियाँ
उतरने लगती है हथेली में
समंदर की वो पहली छुअन
ब्लैक कॉफ़ी में ब्रश डुबोकर
उस दिन उकेरा था अपना नाम
तुम्हारे कुर्ते पर
धुलेगा तो छूट जाएगा रंग
नाम न मिटेगा मन से...
तुमने कहा था
कभी मुड़कर देखूं तो ये रंग
छुअन,तुम्हारा कहा
सब बेमानी लगता है
जैसे किसी कहानी में
गढ़े हों किरदार बिना वजूद वाले
या रेडियो में समय भरने के लिए कोई फिलर