नारी
नारी
ऐ नारी क्यो बनती तुम बेचारी
क्यो खुद को कमजोर तुम दिखाती हो।
सह कर हर अन्याय चुपचाप
क्यो खुद को तुम इतना गिराती हो।
ईश्वर ने बनाया है जब तुम्हे सबला
फिर क्यो तुम अबला कहलाती हो।
तुममें है सर्जन करने की शक्ति
क्यो अपनी ताकत नही पहचान पाती हो।
कभी वासना मे रौंद दी जाती हो
कभी दहेज़ के लिए जलाई जाती हो।
कभी रिश्तों कभी संस्कार के नाम पर
तुम्ही क्यो हर बार झुक जाती हो।
कहने को नारी है देवी का स्वरूप
फिर क्यो जुल्म सहन कर जाती हो।
कभी लाज ,कभी लिहाज, कभी समाज
क्यो इन सबके डर से तुम रुक जाती हो।
कहने को घर की स्वामिनी, अर्धांगिनी हो तुम
पर क्या खुद की मर्जी से कुछ कर पाती हो।
पुरुष प्रधान समाज के छलावे में
क्यो हर बार तुम्ही आ जाती हो।
बस अब बहुत हुआ अब खुद को चेताओं
छलावे भरे शब्दों से तुम बाहर आओ।
तुम भी हो किसी पुरुष जैसी सामर्थवान
इस समाज को अब तुम बतलाओ।
हर रिश्ता जरूरी उसे दिल से निभाओ
पर रिश्तों के लिए खुद को ना गिराओ।
तुममे है चंडी तुम्ही भवानी स्वरूपा
अपनी इस शक्ति को तुम बाहर लाओ।
जो उठे हाथ तुम्हारी तरफ वासना भरे
उन हाथो को काट तुम डालो।
जिस शादी की नींव पड़े दहेज़ से
उस रिश्ते को बनने से पहले तोड़ डालो।
पति को तुम ना परमेश्वर बनाओ
जो सताये वो उसके खिलाफ आवाज़ उठाओ।
नर नारी दोनो से बनी है ये सृष्टि
अकेले मत तुम इसका बोझ उठाओ।
बहुत जी ली औरों की खातिर तुम
अब थोड़ा खुद के लिए भी जी जाओ।