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Kusum Joshi

Abstract

4  

Kusum Joshi

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नारी तुम अग्नि बन जाना

नारी तुम अग्नि बन जाना

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नारी तुम अपने जीवन में,

तपती हुई अग्नि बन जाना,

पास ना आने पाए कोई,

ना छू पाए तुमको ये जमाना,


या बन जाना वो सूर्य गगन के,

सम्मुख जिसकी तीव्र चमक के,

झुक जाते हैं गर्वित सिंहासन,

जिसको दे सम्मान सदा मन,


बन जाना जल की शीतल धारा,

शीतल जल का शांत किनारा,

देख जिसे सब आनन्दित हो जाएं,

पर ना शीतलता कोई चुरा पाए,


बन जाना इंद्रधनुष सतरंगी,

भर देना रंगों से सब नीरव ज़िन्दगी,

पर जब कोई रंगों को छीनने आए,

बन जाना प्रज्ज्वलित तेज कोई,


जिस तेज के सम्मुख सब देव मनुष जन,

सम्मान में बिछा दें हर घर आंगन,

तुम वो तारा समूह बन जाना,

मानव मन में प्रसन्नता लाना,


पर पाओ यदि मन में खोट कहीं,

बन चमकती तलवार कोई,

पापी को पाप का एहसास कराना,

दुष्ट दलन नाशक बन जाना,


देना संरक्षण कमज़ोर जनों को,

भेदभाव को दूर भगाना,

नारी तुम अपने जीवन में,

कोई असीमित शक्ति बन जाना।


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