नारी स्वयं सिद्धा।
नारी स्वयं सिद्धा।
नारी स्वयं सिद्धा हो तुम पहचानो खुद को।
नारायणी ब्रह्माणी और रुद्राणी हो तुम, पहचानो खुद को।
अर्धनारीश्वर सदा से हो तुम, केवल सृजनकर्ता ही नहीं संहारकर्ता भी हो तुम,
यह तुम्हें जानना होगा।
लज्जा तुम्हारा गहना है माना,
लेकिन शुंभ निशुंभ और रक्तबीज को भी तो तुम्हें ही संहारना होगा।
स्वयं सिद्धा हो तुम
सिंह वाहिनी हो तो
नारी एक श्रद्धा हो तुम,
इस संसार की पालनकर्ता और ममत्व की सीमा हो तुम।
अर्धनारीश्वर से नारी रूप में आने में कोमलता भले ही तुमने ग्रहण करी।
लेकिन चंडी रूप भी तो तुम्हारा ही है,
अनैतिकता तुमने कब सहन करी।
ना भूलो अपना सत्य रूप
परमेश्वरी तुम नहीं निर्बल हो।
कोमल रूप तुम्हारा स्वयंसिद्धा है
लेकिन यह ना भूलना कि तू स्वयमेव सर्वदा अपराजिता है।
