"नारी सशक्तिकरण"
"नारी सशक्तिकरण"
वो नारी नहीं चिंगारी है,
कौन कहता वो बेचारी है?
गुर्राने से उसके डरती दुनिया सारी है,
गुस्से को मन में दबा कर बैठी,
शांति से कर रही नये आगाज़ कि तैयारी है,
किसी सशक्तिकरण कि मोहताज़ नहीं
क्यूँकि वो अब तक ना थक कर हारी है।
अरे! इशारों में चलना क्या सिखाते हो
उसके नक्शे कदमों पर तो तुम ख़ुद इठलाते हो,
जाओ-जाओ उसके हक़ छीनकर तुम तो
उसे ही सशक्तिकरण की बात बताते हो,
इज़्ज़त का दुपट्टा भरे बाज़ार में लूट आते हो
फिर अपनी सूरत में मुखौटा सजा कर
उसके घर रिश्ता लेकर पहुँच जाते हो,
शर्म नहीं आती ज़रा भी तुम्हें
चंद मिनट में भिखारी बन जाते हो।
जानते तो तुम भी हो ये कड़वी बात,
नारी तो है पहले से सशक्त और हिम्मत बाज़,
तो मत पहनाओ उसे दिखने में सुन्दर
ये सशक्तिकरण का खोखला ताज,
क्यूँकि नहीं है नारी किसी सशक्तिकरण कि मोहताज़।