सुधार करने का वक़्त
सुधार करने का वक़्त
देख कर ये विगत माया आँखें भी नम हो जाती हैं,
होती है बहुत घबराहट तुमको भी मुझको और हम सब को भी,
यूँ चंचल प्रकति से कैसा खिलवाड़ कर बैठे जो इसने ऐसा सबक सिखाया?
न तो अब रही सुध मौसम बदलने की न तो दिन-रात में फ़र्क समझ आया है,
फिर भी जो इस मानव मन में प्रश्न उठता है उसका एक ही हल सामने आया है,
बहुत की हैं हमने गलतियां पर लगता है अब इन गलतियों को सुधारने का वक़्त आया
इस जीवन को इतने वर्षों तक ज़ी कर भी इसका मोल मानव तो मानव हो कर ना जान पाया,
यूँ तिल-तिल, क्षण- क्षण प्रकृति के स्वाभाव नें हमें कुछ तो आभास कराया,
मानो या ना मानो पर आधुनिकता के इस दौर में हमारी गलतियों नें बहुत बड़ा सबक सिखाया,
बात जब जान तक आ पहुँची तो धीरे-धीरे ही सही इस मानव-जाति को बहुत कुछ समझ आया,
अब तो यकीन कर लो इन गलतियों को सुधारने का वक़्त आया|
कभी-कभी तो पूछते होगे ख़ुद से तुम की इतनी तरक्की करने के बाद भी मैं कुछ क्यूँ ना कर पाया?
यूँ खुद से उलझ कर, सामाजिकता में सुलझ के मैं अपने अपनों के भी काम ना आया,
सोचो ज़रा वैसे तो खरीदने चले थे हम धरती का एक कोना-कोना,
पर कहां सोचा था किसी ने की आयेगा वो वक़्त भी जब छायेगा चारों तरफ कोरोना,
प्रकृति से खिलवाड़ कर, मानवीय मूल्यों का तिरस्कार कर इस ज़ुर्म में प्रकृति के दुश्मनों का हाँथ हमनें ही तो मिलाया,
वास्तव में इन सब को सुधार करने का वक़्त मौका लाया!