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Stuti Srivastava

Abstract Inspirational

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Stuti Srivastava

Abstract Inspirational

समाज की बेटियाँ

समाज की बेटियाँ

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समाज की रीतियाँ और ना जाने

कितनी अनभिज्ञ कुरीतियाँ, 

सामाजिक आडम्बरों के चंगुल से

बाज़रों में बंध गयी हैं कितनी ख़ूबसूरत मूर्तियाँ, 


इज़्ज़त का वास्ता देकर लगा दी हैं

स्त्रियों पर बेकार की अनगिनत पाबंदियां, 

बेबस कर स्त्रियों को माँग लेती हैं

ना जाने कितनें ख्वाहिशों की आहुतियां !


मत तड़पाओ उसे कह कर की

समाज का बोझ हैं हम बेटियाँ, 

सहम जाती हैं उसकी उम्मीदें जैसे

टूट कर बिखर जाती हैं काँच की चूड़ियाँ, 


क्योंकि लाडलों को छूट दे रखी हैं

करने की खुले-आम आवारागर्दियाँ, 

कड़वी है पर बात तो सौ आने सच है ज़िन्दगी की

बगिया में लहराती हैं हमारी फूल जैसी बेटियाँ !


तो करने दो उसे अपने सपनों की उड़ानें

पूरी क्यूँकि ये हैं सिर्फ नादान कामयाबियाँ, 

घरों के आँगनों को खुशहाल बनाने

वाली ये तो हैं प्यारी -सी रंग-बिरंगी तितलियाँ, 


तो क्यूँ ना हम सब हाथ आगे बढ़ाकर ले

लें एक छोटी -सी महान प्रतिज्ञा,  

यदि करना है हम सबको समाज की सुरक्षा तो

मान लो गर्व हैं हमारे समाज का महिलायें और बेटियाँ !


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