नारी मन की वेदना....
नारी मन की वेदना....
हो जानकी तुम,
हो मैथली तुम,
हो जनक दुलारी तुम,
तुम ही हो राज राजेश्वरी,
हो श्री राम की प्यारी तुम।
पत्नी धर्म निभाया तुमने,
राम के संग वन को चली गयी,
फिर आखिरकार राम ने तुम्हारी
अग्नि परीक्षा क्यूँ ली?
क्या अग्नि परीक्षा देकर हर युग में
नारी को सतीत्व साबित
करना होगा,
पति भले भग्वान ही क्यूँ ना हो,
उसे अपनी पत्नी पर भरोसा
कब होगा।
एक धोबी की बातों में आकर
वन प्रस्थान का आदेश दिया ,
प्रजा की महत्ता को सर्वोपरि मान
गर्भवती पत्नी को वन में भेज दिया।
रानी होकर वन में तुमने
प्रसव पीड़ा को सहन किया,
बिना कहे किसी से कुछ तुमने
ये दारूण दुख भी सह लिया।
सुध आयी जब पत्नी की तब
पति लिवाने आ गये,
आशातीत नही यूँ अचानक
पति धर्म निभाने आ गये।
अपने मान और मर्यादा की खातिर
तुमने जाने से इन्कार किया,
तुम्हारे अनंत दुख से द्रवित हो
धरती माँ ने तुम्हें आंचल में लिया।
अपमान व अवहेलना का बोझ
नारी सदियों से ढोती है,
पुरूष के हाथों हर युग में
नारी सदा सर्वथा संतापित होती है।
