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Leena Kheria

Abstract

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Leena Kheria

Abstract

चलता जा...

चलता जा...

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अपनी अपनी उलझनों मे

यूँ तो उलझे हैं सभी 

पर पूरी शिद्दत से उन्हे 

सुलझाने की कोशिश 

तो करनी चाहिये..


मंज़िलें भी हैं जुदा 

और रास्ते भी मुकतलिफ

पर क़दम दो क़दम तो साथ 

चलने की कोशिश 

तो करनी चाहिये ..


बात अपनी ही सही है

सोचता है हर कोई 

पर एक दूसरे के नज़रिये को

समझने की कोशिश 

तो करनी चाहिये ..


ठोकरें लगना तो तय है

ज़िंदगी की इस दौड़ मे

उठकर गिरने और

गिर कर फिर से 

सँभलने की कोशिश 

तो करनी चाहिये ..


है बड़े नाज़ुक सभी 

ये तार रिश्तों के मगर 

बड़े प्यार से इन रिश्तों को 

निभाने की कोशिश 

तो करनी चाहिये ..



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