नारी आज कहाँ सुरक्षित ?
नारी आज कहाँ सुरक्षित ?
नारी आज कहाँ सुरक्षित,
ना घर में ना बाजारों में ?
अखबारों के पेज भरे है,
इन पर अत्याचारों में।
कोई गली या कोई मोहल्ला,
कोई शहर हो तो सच माने,
रोज समाचार नए पढ़ कर,
हम हकीकत को जाने।
कुछ खबर ही गलत मिले है,
देखिये आप हज़ारों में,
नारी आज कहाँ सुरक्षित ?
उम्र कोई हो नारी की,
दुर्व्यवहार से न बच पाती,
घर, दफ्तर या कर्मक्षेत्र हो,
मानो सच से घबराती,
छुपे हुए जैसे बैठे हो
दुर्जन कही दीवारों में।
समाज के कलंक को लेकर,
परिजन भी धमकाए गए है,
कितना गिर गया ये समाज,
कोई समझ न पाए हैं।
कपड़ों का कोई दोष नहीं है,
शुद्धता लाओ कानून और विचारों में,
नारी आज कहाँ सुरक्षित,
न घर मे न बाजारों में ?