STORYMIRROR

Shravani Balasaheb Sul

Abstract

4  

Shravani Balasaheb Sul

Abstract

नामुकम्मल दास्ताँ

नामुकम्मल दास्ताँ

1 min
299


कहानियों में जी रहे हैं कुछ किरदार आज भी

बिना जुर्म सजा काट रहे कुछ गुनाहगार आज भी

उन्हें खबर है जिंदगी ना बख्शेगी हजारों मिन्नतों बाद भी

न एक कतरा बदले में हासिल होगी चाहत जिल्लतों बाद भी

फिर भी दुआ करते रह जाते बस यादों में जीते रह जाते

कहानियों के मरहम लगा के सच्चाई की चुभन सह जाते 

काफ़िलों से डर जाए तो तन्हाई के दर जाते हैं

उड़ के इस जहाँ से मन ही मन में न जाने किधर जाते हैं

ढूंढने से भी मिलते नहीं उनके वजूद के बिखरे निशान कहीं

कहानियों में ही खो गई उनकी नामुकम्मल दास्तान कहीं 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract