वृद्धावस्था की वेदना
वृद्धावस्था की वेदना
वह नर था वह नारी थी
वह प्रेम था वह स्नेह थी
एक फूल सा दिल में खिला
प्रेम कहे तू मेरा भाग्य है
स्नेह कहे तू नसीब से मिला
फिर संयोग की बिजली कोई
दोनों के जीवन मे गिरी
प्रेम स्नेह का हो लिया
स्नेह प्रेम की हो चली
फिर जीवनमयी संघर्ष में
दोनों साथ-साथ बढ़ते रहे
श्रष्टि में प्रेम की बुनियाद
बुनते रहे,
विस्तार हो गया प्रेम भी
स्नेह भी पनपता रहा
यूँ ही कुछ जीवन का
फ़लसफ़ा चलता रहा,
फिर एक सदी सी बीत गई
दोनों के दाम्पत्य जीवन में
वो भी देह खो चला
वह भी देह खो चली
एक कहानी प्रेम की
कुछ यूँ बुजुर्ग हो चली
बना के आशियाना कोई
वो बेघर हो चले
उम्मीद के बीज बोए थे
सन्तानों को खो चले
खुद के घर से बेदख़ल
अब वे वृद्धाश्रम के हो चले।