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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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गुरु की इच्छा।

गुरु की इच्छा।

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रे मन काहे को तू घबराए।

गुरु की इच्छा जैसी होगी तैसो खेल दिखाए।।


चाहे तू कितना भी प्रयास कर ले, तेरी कछु चल ना पाए।

गुरु ने जो लिख दिया भाग्य में, वैसा ही हो जाए।।

रे मन........


घमंड छोड़ गुरु को तू भज ले, यही एक उपाय।

हर घड़ी उसको तू भजले, कितना मजा फिर आए।।

रे मन.........


हिल नहीं सकता एक भी पत्ता, वहीं राह दिखलाए।

सोच समझकर अभी भी चल ले, कुछ नहीं बिगड़ा जाए।।

रे मन.........


माया के सब बंधन झूठे, कुछ भी साथ ना जाए।

गुरु का ही है एक सहारा" नीरज "बाकी सब पराए।।

रे मन .......


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