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Asima Jamal

Abstract

4.5  

Asima Jamal

Abstract

हाँ!! मैं बड़ी हो गयी...

हाँ!! मैं बड़ी हो गयी...

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हाँ !! मैं बड़ी हो गयी... 


उंगली पकड कर चलने वाली मैं

आज जब दूसरों का हाथ थामती हूँ

तो लगता है मैं बड़ी हो गयी


रात के अंधेरों से डरने वाली मैं

आज जब अंधेरे से दोस्ती करली

तो लगता है मैं बड़ी हो गयी


रात और दिन से बेखबर रही मैं

आज जब सूरज जागने से पहले उठती हूँ

तो लगता है मैं बड़ी हो गयी


माँ बाप से फ़रमायिशें करने वाली मैं

आज मुझसे कोई फ़रमायिश करता है

तो लगता है मैं बड़ी हो गयी


मेरी शरारतों को नादानीयाँ समझते थे

आज जब मेरी नादानियों को साज़िशें समझने लगे

तो लगता है मैं बड़ी हो गयी।


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