डर को क़ैद करके दिलों को आज़ाद करें
डर को क़ैद करके दिलों को आज़ाद करें


अकेली ना वो कहीं जा सकती है
अकेली ना वो कहीं रह सकती है
औरत को क्या आज भी अकेले घूमने की आज़ादी नही?
उसपर खुले आम अत्याचार होते रहते हैं
इज़्ज़त का नाम देकर उसको खामोेश कराते रहते हैं
औरत को क्या आज भी इंसाफ़ मांगने की आज़ादी नही?
गरीब बच्चे काम के लिए भटक रहे हैं
वक़्त से पहले वो ज़िंदगी के इंतेहान दे रहे हैं
उन बच्चों को क्या स्कूल में पढ़ने की आज़ादी नही?
बूढ़े माँ बाप अपने बच्चों से काँप रहे हैं
हर फ़ैसले में अनुमति के लिए तरस रहे हैं
माँ बाप को क्या बुढ़ापे में अपना हक़ जताने की आज़ादी नही?
घर का मर्द सब के लिए काम कर रहा है
सबकी ज़रूरतें पूरा करते अपनी उम्र बिता रहा है
क्या उसको अपने लिए भी कुछ कमाने की आज़ादी नही?
हम इस आज़ाद देश के वासी हैं
बुज़ुर्गों ने खून पसीना एक करके आज़ादी दिलाई है
डर को क़ैद करके,क्या हम दिलों को आज़ाद कर सकते नही?