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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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किनारे

किनारे

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लहरों से किनारे सहमे रहे

इसीलिए किनारे, 

किनारे- किनारे ही चलते रहे।


कई बार चाहा मुख्य पृष्ठ पर आऊं

किंतु हाशिये में ही खड़ा पाया खुद को। 


जिंदगी पर जो तवज्जो दी  

जिंदगी का सबक समझ आया मुझको।


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