पार उतर जाओ
पार उतर जाओ
पांच छेद की जीवन नैया, कब तक यूँ बहेगी
बन्द अगर ना किए इन्हें, तो अवश्य ये डूबेगी
अति सूक्ष्म और भयानक, तृष्णाओं का छेद
अधूरी तृष्णाओं से मन को, होता रहता खेद
पूरी हुई तृष्णा ही नई, तृष्णा मन में जगाती
इसी तरह तृष्णाएं, निरन्तर बढ़ती ही जाती
तृष्णाओं का छेद यूँ ही, विशाल होता जाता
नई नई तृष्णाओं के, अनगिनत छेद बनाता
क्रोध का छिद्र विवेक को, खोखला कर देता
सोच समझ और सारा ज्ञान, चोरी कर लेता
क्रोध का स्वरूप जितना, होता जाता विशाल
सम्बन्ध सबसे टूटते, आगे बढ़ना होता मुहाल
जीवन नैया में जब, लोभ का छिद्र बन जाता
विवेक रूपी पैंदे को, दीमक बनकर खा जाता
भ्रष्ट बनाकर हमें यही, पतन की ओर ले जाता
नैतिकता को गलाकर, भँवर में नैया फँसाता
मोह का छेद नैया को, नए बंधनों में उलझाता
अपनों से बिछड़ने की, पीड़ा में बहुत रुलाता
बंधनों के मकड़ जाल में, हम सबको फँसाता
मंजिल से पहले ही, जीवन नैया को अटकाता
नैया डूबनी निश्चित होती, अहंकार जब आता
अहंकार में डूबा मानव, सोच नहीं कुछ पाता
मेरी दौलत मेरी ताक़त, मैं ही सबसे बलवान
घमण्डी मानव समझता, खुद को ही भगवान
कर लो नैया डुबाने वाले, इन छेदों की पहचान
इन्हें बन्द किए बिना, पार जाना नहीं आसान
पवित्र संकल्पों का मसाला, इनमें भरते जाओ
ईश्वरीय मत की लेप से, बन्द इन्हें करते जाओ
जीवन नैया को तुम, भवसागर में आगे बढ़ाओ
लक्ष्य पर रखकर कड़ी नजर, पार उतर जाओ।