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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Drama Fantasy

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Kumar Gaurav Vimal

Abstract Drama Fantasy

​ना मैं हूँ वीर हनुमान सा....

​ना मैं हूँ वीर हनुमान सा....

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ना मैं हूँ वीर हनुमान सा,

ना तुम ठहरे श्री राम से...

की चीर के छाती बता दूँ तुम्हें,

अपने दिल की बातें आराम से...


कलियुग की यहीं लीला है,

यहाँ हर राज़ पर कोई नाराज़ है...

दिल की बात जब दिल में चुभे,

तो हर कोई उठता आवाज़ है...

ना तुम हो केजरीवाल दिल्ली के,

ना हम ठहरे आदमी आम से...

की सुन कर तुम्हारे वादें तुम्हें,

बिठा ले दिल में अपने आराम से...


अनसुलझे सवालों से निकला,

ये एक ऐसा जवाब हैं...

औरों की तरह ये खुला नहीं,

ज़िंदगी मेरी एक बंद किताब है...

ना तुम हो किसी मैखाने की साकी,

ना हम ठहरे किसी जाम से....

की देख की तेरी सूरत हम,

बिक जाये आराम से...


कहूंगा बस इतना की मतलब,

रखो तुम अपने काम से...

ज़िन्दगी एक सफर है मेरे दोस्त,

मिलते रहेंगे हम आराम से...


ना मैं हूँ वीर हनुमान सा,

ना तुम ठहरे श्री राम से...

की चीर के छाती बता दूँ तुम्हें,

अपने दिल की बातें आराम से...


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