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Dinesh paliwal

Classics

4.5  

Dinesh paliwal

Classics

। ना जाने मैं क्यों लिखता हूँ।

। ना जाने मैं क्यों लिखता हूँ।

2 mins
267


ना तो मेरा दिल ही टूटा है

ना मैं दीवानों सा दिखता हूँ

ना चाहत की तड़प रही मन

ना विरह के गीत परखता हूँ

फिर भी शब्द उकरते हरदम

ना जाने मैं क्यों लिखता हूँ ।।


ना चाहत महफिल में चमकूँ

ना वाह वाही पर ही तरता हूँ

ना चांद आसमाँ से मैं उतराता

गेसुओं पे न किसी के मरता हूँ

क्यों गीत बसे मन फिर ये सारे

ना जाने मैं क्यों लिखता हूँ ।।


मुझको तो किसी से रार नहीं

ना बेवजह शोध ही करता हूँ

ना चाटुकार मैं सत्ता सुख में

ना अधिकार तंत्र से डरता हूँ

फिर क्यों आंदोलित मन मेरा

ना जाने मैं क्यों लिखता हूँ ।।


श्रंगार वियोग या हो करुण वीर

मैं इन में ना किसी की सरिता हूँ

दोहे ग़ज़लें या फिर छन्द ही हों

मैं कब इन में मात्राएं भरता हूँ

ज़ज्बात हाथ ना दिल की स्याही

ना जाने मैं क्यों लिखता हूँ ।।


शायद हूँ मैं ये कुछ भार लिये

कुछ तेरे इस मन के उद्गार लिये

जब भी काग़ज़ दिखता मुझको

कुछ कुछ तो उसपर भरता हूँ

हूँ कवि नहीं ना ही शायर हूँ

बस जो दिखता है वो लिखता हूँ

खुद को मैं खुद से मिलवा पाऊँ

इसलिये आज बस लिखता हूँ

इसलिये आज बस लिखता हूँ ।।


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