ना जाने कब बीत गया वो पल
ना जाने कब बीत गया वो पल
ना जाने कब बीत गया वो पल
भोर से सायं खेलता था खेल
वो पेड़ों पर चढ़ना याद है
रेत के बनाये हर महल
ना जाने कब बीत गया वो पल
एक क्षण सोचकर देखो
याद आएगा हठ खेलों का हर पल
लकड़ी की गाड़ी को असली समझा था
लकड़ी की बंदूक से दुश्मन ललकारा था
कब हमें बड़ा कर गया ये पल
वो दादा की फटकार दादी का प्यार
पापा का आना दौड़कर उनसे लिपटना
याद है हमें,
ना जाने कब बीत गया वो पल
मेले में जाना जलेबी, गोलगप्पे खाना
लौटकर आना फिर मम्मी को बताना
याद है हमें ना जाने कब
बीत गया वो पल
