मुसाफिर
मुसाफिर
चलते चलते सुकून की आस में,
मुसाफिर हूं मैं।
ऐ खुदा कब तक इम्तिहान दूँ,
मन भटक रहा है।
आँखें नम मानसून की तरह,
बदन भीग रहा है।
चाहत है बड़ी मंजिल पाने की,
आगे बढ़ रहा है।
नहीं थकुंगा नहीं रुकूँगा,
निरंतर काम कर रहा हूँ।
ऊँचाइयों की चाह में,
संसार के ज्ञान रूबरू हो रहा हूँ।
आखिर मेहनत रंग लाई,
खुशियां मिल रहाी हैं।
अब नहीं जीवन में गिला सिकवा,
प्रेम पा रहा हूँ
आनंद पा रहा हूँ।
