मुहब्बत।
मुहब्बत।
रंगे महफिल जमा गया कोई
बिगड़ी बात बना गया कोई
मुहब्बत-ए-नामा सिखा गया कोई
दर्दे-दिल की दबा बता गया कोई
दिल की दुनिया उजड़ी सी लगती है
जैसे दिल में समा गया कोई
गर मुहब्बत का पाठ पढ़ाया ही था
गमे मुहब्बत दिला गया कोई
अब सिर्फ इक गुज़ारिस है तुमसे
कभी जुदाई दे न कोई
अगर खाई है कसम साथ जीने-मरने की
निभानी ही पड़ेगी नहीं तो होगी बेवफाई।