मुहब्बत कि हकीक़त
मुहब्बत कि हकीक़त
सूनी हैं राहें एक हमसफर के बग़ैर
लेकिन उसे काँटों से महफूज़ करना भी लाज़िम था।
वादा किया था उसके साथ चलने का बेशक
लेकिन उसे अंधेरे में ले जाना भी ना गवारा था।
बिखर जाएंगे दोनों के अश्क दामन में अब
लेकिन उसे ज़िन्दगी के ग़म से बचाना भी ज़रूरी था।
उनकी नाराज़गी भी गलत नहीं
लेकिन मुहब्बत से दूर होना सही फैसला था।
देखना है कितनी मज़बूत है मुहब्बत की डोर
इस वास्ते नफरत कि ज़ंजीरों में खेद होना ही था।