मरुस्थल !
मरुस्थल !
जब प्रेम प्रीत से मिलता है,
तो विश्वास को बल मिलता है।
ईश कण-कण में रहता है,
पर आँखों को क्यों नहीं मिलता है।
दुविधाओं के समंदर में उतर,
दुविधाओं का हल मिलता है।
जाना है सब कुछ जिसने,
फिर वो पागल लगता है।
जन्म जन्म के प्यासों को,
केवल मरुस्थल ही मिलता है !