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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

मृत्यु के बाद श्राद्ध

मृत्यु के बाद श्राद्ध

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जीते जी रिश्ता निभाया गया नहीं 

बाद मृत्यु के मानते हो श्राद्ध 

खूब पकवान बनवाये हैं तुमने 

और पंडित लेंगे इसका स्वाद 


किस हाल में थे हम कभी सुध न ली 

हर पल हम करते रहे इंतज़ार 

क्यों परंपरा अब निभा रहे हो 

क्या लोक लाज का आया है विचार 


जीते जी वृद्ध आश्रम पहुंचवाया था 

खड़े रहे थे सामने सीना तानकर

और अपनी ही दुनिया में मस्त हो गए थे 

हमसे हमारी दुनिया छीनकर 


तुम्हारा दिल जानता है कि

कितना ख्याल तुमने हमारा रखा 

कभी खुल के न हमसे प्यार किया 

न ख़ुशी से कभी गले लगा लिया 


कौन सी हमसे भूल-चूक हो गई थी 

मर कर भी न हम जान पाए 

आज तुम यह परंपरा निभा रहे हो 

रूह फड़फड़ाकर कह रही है

हाय!हाय!


गर विचारों में तेरी शुद्धि आ गई हो 

और मन से श्राद्ध मना रहे हो 

तो दे आओ किसी वृद्ध आश्रम में 

यह सारे पकवान जो बना रहे हो 


कितनी ही ज़िंदा लाशें वहाँ तड़प रही हैं 

सजा पा रहे है न जाने किस कसूर का 

जा उनके आँसू तुम पोंछ डालो 

ऐलान करो एक नए दस्तूर का 


यही तुम्हारा सही पिंडदान होगा 

और हमको भी मिलेगी तृप्ति 

हमारी आत्मा तुम्हें आशीष देगी 

तुम्हें भी पापों से मिलेगी मुक्ति 


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