मृत्यु के बाद श्राद्ध
मृत्यु के बाद श्राद्ध
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जीते जी रिश्ता निभाया गया नहीं
बाद मृत्यु के मानते हो श्राद्ध
खूब पकवान बनवाये हैं तुमने
और पंडित लेंगे इसका स्वाद
ज़िंदा होते कभी हमारी सुध न ली
हर पल हम करते रहे इंतज़ार
अब क्यों परंपरा निभा रहे हो
क्या लोक लाज का आया है विचार
वृद्ध आश्रम पटकआये थे जीते जी हमें
खड़े रहे थे सामने अपना सीना तानकर
फिर अपनी दुनिया में मस्त हो गए थे
हमसे हमारी ही दुनिया छीनकर
दिल के अंदर ज़रा झांको और बताओ
कितना ख्याल तुमने रखा हमारा
कभी खुल के न हमसे कभी प्यार किया
न ख़ुशी से कभी हमें गले लगा लिया
हो गई थी कौन सी भूल-चूक हमसे
मर कर भी न अबतक जान पाए हम
आज तुम यह परंपरा निभा रहे हो
कैसे भूलें हम वे बेहिसाब गम
गर विचारों में तेरी आ गई हो शुध्दि
और मन से श्राद्ध मना रहे हो
तो जा दे आओ किसी वृद्ध आश्रम में
सारे यह पकवान जो बनवा रहे हो
कई ज़िंदा लाशें तड़पती मिलेंगी वहाँ
सजा पाते होंगें न जाने किस कसूर का
जा बेटा उनके आँसू तुम पोंछ डालो
ऐलान करो अब तुम एक नए दस्तूर का
यही तुम्हारा सही पिंडदान होगा
विश्वास करो हमको भी मिलेगी तृप्ति
हमारी आत्मा तुम्हें आशीष देगी
और तुम्हें भी मिलेगी तेरे पापों से मुक्ति.......