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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

मोम के पंख

मोम के पंख

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मोम के कोमल पंख लगाकर मैं

क्यों सूरज को छूना चाहता हूँ।

बारूद के ढेर पर बैठ कर मैं

क्यों आग से खेलना चाहता हूँ।

पता है मुझको जीवन मेरा

कांटो से भरा हुआ है,

कांटो भरी राहों पर चलकर मैं

क्यों फूलों की इच्छा रखता हूँ।

मोम के कोमल पंख लगाकर मैं

क्यों सूरज को छूना चाहता हूँ।

हर पल हर क्षण पता नही

कब आँधी कब तुफां आएं

बैठ इस किनारे पर मैं,

किनारा वो पाना चाहता हूँ।

मोम के कोमल पंख लगाकर मैं

क्यों सूरज को छूना चाहता हूँ।

मुझको ये भी पता नही

मेरी मंजिल रा ह कौन है

क्यों फि र रोक हवाओं को मैं

पता मंजिल का जानना चाहता हूँ।

मोम के कोमल पंख लगाकर मैं

क्यों सूरज को छूना चाहता हूँ।

पेट तृप्त कभी नही होता

घास पर ओंस की चंद बूंदों से

क्यों पीकर उन बूंदों को मैं

तृप्ती का आभास करना चाहता हूँ।

मोम के कोमल पंख लगाकर मैं

क्यों सूरज को छूना चाहता हूँ।



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