मोहतरमा तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो
मोहतरमा तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो
मुझ में सोती हो और मुझ में
ही जगती हो
बेचैन करके मुझे,खुद चैन
से रहती हो
क्यूँ हर घड़ी, सहमी-सहमी
सी दिखती हो
मोहतरमा तुम ऐसी ही
अच्छी लगती हो!
मेरे दर्द-ऐ-दिल कि
दवा हो तुम
मैं ख़ुश हूँ इसकी
दुआ हो तुम
मुझे इश्क़ का रोग लगा के
मेरा चैन, सुकून छीनी हो
मेरे चाय में जो मिठास है
उसकी तुम ही चीनी हो
बड़ा अच्छा लगता हैं
जब तुम आयी.लव.यू
कहती हो
क्यूँ हर घड़ी, सहमी-सहमी
सी दिखती हो
मोहतरमा तुम ऐसी ही
अच्छी लगती हो!