मोहरे
मोहरे
सरकार सोती रह गई, इस बार प्रहरी फिर मरे।
जो बिन लड़े ही मर गए, घर आंसुओं से भर गए,
जिन को सहारा दे रहे थे बेसहारा कर गए
वह तंत्र लापरवाह था जिस तंत्र की खातिर मरे।
इस बार प्रहरी फिर मरे।
इस घोर नरसंहार की, गलती नहीं स्वीकार की,
कैसे करें विश्वास होगी बात भूल सुधार की।
सरकार के हैं आचरण संवेदनाओं के परे,
इस बार प्रहरी फिर मरे।
बलिदान हों या हादसे, रुकते नहीं सरकार से,
हर बार का जुमला यही षडयंत्र है उस पार से।
सैनिक चुनावों के बनाए जा रहे हैं मोहरे,
इस बार प्रहरी फिर मरे।
