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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Inspirational

4.8  

निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

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मोची के सपने

मोची के सपने

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जूतों-सी फटी ज़िंदगी को सिलकर,

बनाया था उसने कर्म को ताज,

पर बेटे की नन्हीं आँखों से देखे,

कल के हसीं सपने भी आज ! 


फुटपाथ पर उसका एक कोना था,

कुछ ब्रश, पॉलिश और एक बिछोना था,

शिकन पड़ गई माथे पर,

ध्यान मग्न चप्पल जूतों पर,

ब्रश चमकाते गैरों के जूतों पर ! 


जीवन था बीता निर्धनता में,

पर था यकीं उसे अपने बच्चे की कुशलता में,

बाँध रहा है जूतों में गाँठ कई,

और बुनता है बेटे के भविष्य के ख़्वाब कई ! 


जूते सिलते उस मोची संग बैठे, 

बेटे के मस्तक पर तेज समान, 

पेशे से उसके प्यार को देखा

और देखा उसके सपनों का अभिमान ! 


कौन कहता है सिर्फ देवालय में होता है, 

ईश्वर के भिन्न रुपों का ज्ञान, 

देखा है मैंने उस बीच सड़क पर, 

 'विश्वकर्मा' संग शारदा' विराजमान !


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