मंज़िल मेरी राह न तक
मंज़िल मेरी राह न तक
ऐ मंज़िल मेरी राह न तक,
मैं तुझसे वफ़ा न कर पाउँगा,
ऐ मंज़िल मेरी राह न तक,
मैं तुझसे बेवफाई कर जाऊँगा,
तेरी हर सखियों से मई,
रोज़ छिनता जाऊँगा !
ज़िन्दगी जो दे गई,
वो गीत गुन गुनाऊँगा,
और तेरी हर अज़ान को,
मैं धुन अपनी दे जाऊँगा !
चलते-चलते जब भी कभी,
मैं थक-सा जाऊँगा,
तेरी घर की चौखट पर,
अपनी शैय्या लगाऊंगा !
और ये जो तेरा बेदर्द साम्रज्य,
वो सब खतम हो जायेगा,
जब तेरी एक प्यास की मंज़िल,
मैं मंज़िल बन जाऊँगा,
मैं मंज़िल बन जाऊँगा !
