मैं हूँ
मैं हूँ
मैं यानी कि मैं ही,
आज से अपने को
समर्पित करता हूँ।
मैं,मैं हूँ,
मैं बनना चाहता हूँ
और मैं बनकर सर्वहितकारी
भित्ती मात्र रह जाना चाहता हूँ।
मेरी सोच मेरा धर्म है
और मेरा धर्म मुझे,
मैं बनकर रहने को
मज़बूर करता है।
मैं कितने दिनों से
धरती पर हूँ,
किनके साथ हूँ
और क्यूँ हूँ,
यह जानने की जरुरत
सिर्फ मुझे है।
इसलिए मैं
सिर्फ मुझे देखता है,
मुझे लिखता है
मुझे रंगता है
और मुझे मेरा अद्वितीय
पर्याय बनाता है।
इसलिए मैं हूँ...।