STORYMIRROR

Nikhil Kumkum

Abstract

3  

Nikhil Kumkum

Abstract

मैं हूँ

मैं हूँ

1 min
400

मैं यानी कि मैं ही,

आज से अपने को

समर्पित करता हूँ।


मैं,मैं हूँ,

मैं बनना चाहता हूँ 

और मैं बनकर सर्वहितकारी

भित्ती मात्र रह जाना चाहता हूँ।


मेरी सोच मेरा धर्म है 

और मेरा धर्म मुझे,

मैं बनकर रहने को

मज़बूर करता है।


मैं कितने दिनों से

धरती पर हूँ,

किनके साथ हूँ 

और क्यूँ हूँ, 

यह जानने की जरुरत

सिर्फ मुझे है।


इसलिए मैं

सिर्फ मुझे देखता है,

मुझे लिखता है

मुझे रंगता है 

और मुझे मेरा अद्वितीय

पर्याय बनाता है।

इसलिए मैं हूँ...।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract