मंडप
मंडप
वो सहमी सी मंडप में बैठी है,
कई सवाल मन में है,
क्या सात फेरे उम्र भर के रिश्ते को मजबूत कर पाएंगे,
क्या रस्मों से दो परिवार जुड़ पाएंगे,
क्या ये अग्नि के वचन जीवन भर निभाए जाएंगे,
क्या ये जो रिश्ते छूट गए वो फिर मिल जाएंगे,
क्या वो नए लोग मुझे समझ पाएंगे,
क्या मेरे परमेश्वर मेरे सपने समझ पाएंगे,
क्या वहां भी मेरी ख्वाहिश को पंख मिल जाएंगे,
क्या उनकी सोच में मेरे आदर्श मिल जाएंगे,
क्या महंदी की खुशबू की तरह रिश्ते महक पाएंगे,
क्या हल्दी की खूबसूरती की तरह रिश्ते निखर पाएंगे,
क्या जब भूल होंगी वहां मुझसे तो सब जल्दी भूल जाएंगे,
क्या मेरी मुस्कुराहट से हमराही सारे दर्द भूल जाएंगे।