मन पूछे हैं
मन पूछे हैं
मन पूछे है..
मुसाफ़िर थक बैठा जो छांव में,
बैरी मन पूछे है,
और कितनी दूर है मंजिल आशा तिल तिल बिखरे है,
नई तान नई धुन पिरोता मिटाता गीतकार खामोश है,
बैरी मन पूछे है,
कहा छुप गए राग सभी मेरा गीत अभी अबोध है,
संगम के छोर पर बैठा बैराग है,
मन बैरागी पूछे है,
घाट घाट मैं फिर आया तृप्ति कितनीं अब दूर है,
राख तन, नीर हुआ मन, प्रीत विरह में सूनी चौखट है,
मन बैरागी पूछे है,
मेरी प्रीत की अंतिम बिंदु क्यूं सिह्याई से ओझल है,
काव्य रचे या भाव समेटे भीतर एक उलझन है,
बैरी मन ये पूछे है,
क्यूं मेरी कलम से मेरे उलझे उलझे से बंधन है,
उजड़ा घोंसला लिए पंछी डाल पर बैठा सोचे है,
बैरी मन ये पूछे है,
क्यूं सब मेरा छिन गया क्यूं उजड़ा सब ना सिमटे है,
जूझ रहा अपनी मुश्किल से चुप ही सब सहता जाता है,
बैरी मन बस कह कर कुछ चुप सा हो जाता है,
ईश्वर से बस पूछे है दुख कितने अब बाकी है,
मेरी टूटी जाए सहन की क्षमता आखिर अब और क्या बाकी है।।