मन मस्तिष्क
मन मस्तिष्क
मन मस्तिष्क एक नगर है
इसमें बहुत से घर हैं
इसका विन्यास कठिन है
यहां मन और अंतर्मन है
एक भाग में हैं भूलभुलैया
कम रोशनी और संकीर्ण गलियां
जहां प्रकाश पहुंच नहीं पाता
कोई सही मार्ग ढूंढ ही न पाता
दुशासन यहीं है रहता
निर्बल का चीरहरण है करता
यहां मन की आंखे न खुलती
यही है धृतराष्ट्र की धरती
नगर केंद्र में एक महल है
ये तो केशव का घर है
इसके पार्श्व में है जो भूमि
वही है कुरुक्षेत्र की रणभूमि
यहां प्रतिदिन युद्ध होता
चक्रव्यूह यहीं रचे जाते
अभिमन्यु का वध होता
पितामह और गुरुजन छले जाते
यहीं पार्थ को उद्धबोधन होता
यहीं कृष्ण गीता का ज्ञान देते
युद्ध में सब कुछ खो कर भी
सारथी बन जीवन रथ थाम लेते
यहां से दूर है, एक फूलों की घाटी
दिखते वन उपवन, नदियां बलखाती
जहां एकांत में शीतल ताजी हवा है
मन में प्रेम और निश्चलता वहां है
यहां है अदभुत ज्ञान की बाती
जहां दिन ही रहता रात न आती
संगीत साहित्य कला का सृजन होता
मन अंतर्मन वीणा सा झंकृत होता
अत्यंत अनमोल है यह धरती
इस पर दुर्योधन की नजर पड़ती
पर वो इसको छीन न पाता
मार्ग में केशव का महल दिख जाता
हम नगर के जिस हिस्से में होते
वैसा ही आचरण करते
कभी कर्ण तो कभी अर्जुन बनते
मन मस्तिष्क में महाभारत को रचते।
