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Gurminder Chawla

Tragedy

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Gurminder Chawla

Tragedy

मजदूर

मजदूर

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अपने नन्हे चांद की उँगली पकड़े चाँदनी रात में वो चकोरी निकल पड़ी थी।

मंजिल दूर थी फिर वो क्यों मजबूर थी

जी हाँ वो एक मजदूर थी।

पैर लड़खड़ा रहे थे न मालूम थकान से या भूख से

पैरों से ज्यादा इरादे मजबूत थे अपने बच्चे की खातिर हर सितम मंजूर थे।

मुँह से आह निकल रही थी वो एक गरीब माँ चल रही थी

जाने क्यों पग को चलना था न जाने जीवन मे उसे कितनी बार मरना था।


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