छुटकारा (कविता )
छुटकारा (कविता )
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आओ अर्थी सजा लो,
नलहा धुला कर सजाकर
अर्थी तैयार करी
आज तो नयी चादर चढ़ाई है।
महंगे हार, फूल गुलाब और
अगरबत्ती की खुशबू भी है
भीनी भीनी,
कोई फूट फूट कर रो रहा
घर वालों का हमदर्द बन रहा
बाकी सब छुप छुपकर हँस रहे है।
कन्धे पर ले जाते बेटे सोच रहे
बड़ा भार उठाया है
बड़ी मुश्किल से
बूढ़े बाप से छुटकारा पाया है ।