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Sanjay Aswal

Tragedy

4.4  

Sanjay Aswal

Tragedy

मज़दूर

मज़दूर

1 min
283


खेत हो या खलियान

सड़क बनानी हो

या कोई बांध,

मेरे हाड़ तोड़ परिश्रम से

जो पसीना टपकता है

वो एक मजबूर का होता है

हां मैं मजबूर हूं

क्यूँ कि अभावों में पैदा हुआ

मैं एक मज़दूर हूं।


दुःख,दरिद्रता,

भूख में मैं जीता हूं

तन ढकने के लिए कपड़े

सर छिपाने के लिए मकान

ना हो भले मेरे पास

फिर भी अपनी मेहनत लगन से

नव निर्माण में सर्वस्व लूटा देता हूं

क्यूं कि मैं एक मज़दूर हूं।


दो वक्त की रोटी के लिए,

मारा मारा फिरता हूं

दुत्कारे जाने पर खून के

आँसू पीता हूं

पर उफ़ नहीं करता,

क्यूं कि अनपढ़ हूं, शोषित हूं,

मैं एक मज़दूर हूं।


अमीरों के महल बना कर,

खुद झोपड़ी में सोता हूं

कम पैसों पर भी घंटो फैक्टरी,

मिलों में काम करता हूं

ना वक्त की परवाह मुझे,

ना खुद की है चिंता,

बस तकदीर अपनी,

अपने हाथों से मैं लिखता हूं

क्यूं कि मैं एक मज़दूर हूं।


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