मिथ्या सब राग सुनावैं
मिथ्या सब राग सुनावैं
मेटहुं सब दुःख अपार तुम्हारा,
रहेहु सब सुख संसार तुम्हारा।
यह जग न रुठे भले ही हम रुठें,
यह रब न रुठे भले ही जग छूटे।
कितने लोग जमा हैं तुमको पता है मंच से,
भीड़ कारवां बनेगी न समझ पाओगे तंज से।
यह दास्तां कोई शय नहीं हमारी,
रूखसत न हुये न मोहब्बत हमारी।
साथी साथ से मांझी पतवार से होता है,
सांची बात पे हिसाब भी बात से होता है।
बहुत कुछ लिख देता हूं, तकनीकी को कागज समझ लेता हूं।
तुम एक बात समझ लो, लेखनीय शैली से शबूर कुछ दे देता हूं॥
चांद निखारै खुद चांद निहारै,
बात निकारै खुद बात लुभावै॥
मिथ्या सब राग सुनावै,
जाति दिखावै खुद जाति बतावै॥
क्या लिखता हूं सब खाक समझते हैं,
यह दुनिया वाले सजदा की बात समझते हैं...