" मिलन"
" मिलन"


कई बार सोचा कि कुछ,
नई-नई बातें तुम से कहूँ !
पर तुम्हारे सामने आकर,
सोचता हूँ कहूँ तो कैसे कहूँ ??
जो बातें कहने को रहती हैं,
तुम्हें देखकर भूल जाता हूँ !
तुम्हारे रूप के सौंदर्य को,
देख कहीं और खो जाता हूँ !!
विरह के क्षण में हमारी,
विरह रचना बनने लगती है !
तुम्हारी मिलन की बेला में,
शृंगारिक अनुभूति होती है !!
उनकी बातें भी अधरों तक,
अधूरे रह के आधे रह गए !
प्यार के दीपक के जलने से,
मौसम सावन सुहाने हो गए !!