“बे-तहाशा गर्मी”
“बे-तहाशा गर्मी”
बे-तहाशा गर्मी पड़ रही है
लोग बे-तहाशा परेशान हो रहे हैं
तालाब सूख गए
नहर अपने मुँह को फाड़े बैठा है
नदियाँ सूख चलीं
प्यासी धरती बिलख रही है
बरखा रानी रूठ गयी है
किसान आकाश की ओर निहार रहे हैं
पनघट और कुएं वीरानपड़े हैं
चापाकल की खटर -खटर कहाँ सुनने को मिलती है ?
जंगल बाग़ बगीचे उजड़ने लगे हैं
शहरीकरण बुल्डोजर चला रहे हैं
कल कारखाने कार्बन उत्सर्जन हवा में ज़हर घोल रहा है
ग्लोबल वार्मिंग की बातें बहुत होती रहतीं हैं
पर कोई ठोस कदम लेने से कतराते हैं
अपने- अपने देश लौटकर चले आते हैं
और ए सी के बंद कमरे में अपनी उपलब्धियों का राग अलापते हैं !!